tag:blogger.com,1999:blog-48851043035132590202024-03-13T06:25:16.762+05:30आधुनिक हिंदी साहित्य / Aadhunik Hindi Sahitya बचे रहेंगे शब्द, बचा रहेगा जीवनHindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.comBlogger102125tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-69945857735872480192018-10-07T21:15:00.000+05:302018-10-07T21:26:06.998+05:30पत्थर के नीचे दुःख - राकेश रोहित
बोध कथा
पत्थर के नीचे दुःख
- राकेश रोहित
तेज धूप में वहीं थोड़ी छांह थी।
बेटे ने पत्थरों को उठाकर एक जगह रखकर बैठने की जगह बनाने की सोची कि बाप ने बरजा-
"नहीं, नहीं पत्थर मत उठाना उसके नीचे कोई दुख होगा।"
बेटा तब तक पत्थर उठा चुका था और उसके नीचे से एक गहरे काले रंग का बिच्छू निकल कर पेड़ की तरफ भागा।
बेटे ने हड़बड़ाकर उसे रख दिया और दूसरा पत्थर उठाते हुए पूछा-
"पिता इसके Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-63154586436477945762016-01-24T17:23:00.000+05:302016-01-24T17:31:36.374+05:30पानी – राकेश रोहित
लघुकथा
पानी
– राकेश रोहित
"पानी पी लूँ?"
उसने विनम्रता से पूछा।
"पानी के लिए पूछते
हैं! पीने के लिए ही तो रखा है। जरूर पीजिए!" कहते हुए वे थोड़ा गर्व से भर
गये। "यही तो हमारी सभ्यता- संस्कृति है। पानी हम सबको पिलाते हैं। अरे हमारे
गांव में तो...! " उन्होंने एक लंबी कहानी शुरू की।
पानी पीकर पीने वाले ने राहत की सांस ली
और कृतज्ञता से कहा- "धन्यवाद साहब, बहुत जोर की प्यास लगीHindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-47497139842935211972016-01-02T21:11:00.001+05:302016-01-02T21:12:54.120+05:30वृक्ष के सपने में उड़ान है - राकेश रोहित
कविता
वृक्ष के सपने में
उड़ान है
- राकेश रोहित
वह इतनी अकेली थी
सफर में
कि वृक्ष के नीचे खड़ी हो गयी
वृक्ष ने उसे देखा और हरा हो गया!
उसके मन में दुख था
सो झरे कुछ पत्ते
और दुख से पीले पड़ गये!
कहना था उसको
सो गाने लगा पेड़
और घर लौटीं चिड़ियाएं संग संगीत
लेकर!
वह रो रही थी
तो वृक्ष ने डाल दी चादर अंधेरे
की
जड़ों में भरते रहे उसके आंसू
और वह वृक्ष हो गयी!
सुंदर सुबहों Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-22985815993589393902015-11-10T20:34:00.000+05:302015-11-10T20:35:15.075+05:30सुमन प्रसून - राकेश रोहित
कविता
सुमन प्रसून
- राकेश रोहित
सुमन प्रसून को
क्या सिर्फ कविताओं से जाना जा
सकता है
जिसके नीचे लिखा होता है उसका
नाम
या कविता पाठ के समय
उसकी उन आँखों को भी पढ़ना होगा
जो ऐसे डबडबाई रहती हैं
जैसे दो छिपली भर जल हो
और उनमें डूब रहा हो चाँद
उदास!
सुमन प्रसून क्या
तुम सुनती हो
कभी अपनी ही आवाज?
जहाँ तुम्हारे खुशरंग शब्द भी
अपनी उदासी छुपा नहीं पाते
और ऐसे थरथराते हैं
जैसे Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-59414921608142962822015-11-01T10:39:00.000+05:302015-11-01T10:40:46.746+05:30प्रेम के बारे में नितांत व्यक्तिगत इच्छाओं की एक कविता - राकेश रोहित
कविता
प्रेम के बारे में नितांत व्यक्तिगत इच्छाओं की एक कविता
- राकेश रोहित
मैं नहीं करूंगा प्रेम
वैसे
जैसे कोई बच्चा जाता है स्कूल
पहली बार
किताब और पाटी लेकर
और इंतजार करता है
कि उसका नाम पुकारा जायेगा
और नया सबक सीखने को उत्सुक
वह दुहरायेगा पुरानी बारहखड़ियां!
मैं
जैसे गर्भ से बाहर आते ही हवा
की तलाश में
रोता है बच्चा और चलने लगती हैं
सांसें
वैसे ही सूखती हुई अपने अंतर की
नदी Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-88521307461256397672015-10-18T18:15:00.000+05:302015-10-18T21:30:29.693+05:30बड़ी बात छोटी बात - राकेश रोहित
कविता
बड़ी बात छोटी बात
- राकेश रोहित
उसने कहा हमेशा बड़ी
बातें कहो
छोटी बातें लोग नकार देंगे
जैसे कहो आकाश से नदियों की होती
है बारिश
कि यह जो तुम्हारी आँखों का अंधेरा
है
दरअसल वह एक घना जंगल है
कि एक दिन हाथी चुरा ले जाते हैं
फूलों की खुशबू
कि संसार की सबसे खूबसूरत लड़की
तुमसे प्यार करती है।
पर इतना बड़ा कुछ
नहीं
मुझे कहनी थी कुछ छोटी बात
कि जैसे जब हिल रहे थे पहाड़
तो Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-48959978066533245942015-10-16T16:14:00.000+05:302015-10-16T16:17:14.541+05:30एक दिन - राकेश रोहित
कविता
एक दिन
- राकेश रोहित
सीधा चलता मनुष्य
एक दिन जान जाता है कि
धरती गोल है
कि अंधेरे ने ढक रखा है रोशनी
को
कि अनावृत है सभ्यता की देह
कि जो घर लौटे वे रास्ता भूल गये
थे!
डिग जाता है एक दिन
सच पर आखिरी भरोसा
सूख जाती है एक दिन
आंखों में बचायी नमी
उदासी के चेहरे पर सजा
खिलखिलाहट का मेकअप धुलता है एक
दिन
तो मिलती है थोड़े संकोच से
आकर जिंदगी गले!
अंधेरे ब्रह्मांड
में दौड़ रहीHindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-41475673572297472442015-10-11T18:44:00.000+05:302015-10-11T18:54:10.840+05:30कवि का झोला - राकेश रोहित
कविता
कवि का झोला
- राकेश रोहित
कवि के झोले में क्या है?
हर फोटो में साथ रहा
कवि के कांधे पर टंगा वह
खादी का झोला।
कवि के झोले में क्या है!
बहुत कुछ है, अबूझ है
असमझा है
प्रकट से अलग
कुछ गैरजरूरी
कुछ खतो किताबत
कुछ मुचड़े कागज
कुछ अधूरी
अनलिखी कविताएँ!
कवि के झोले में जादू है।
दुनिया विस्मय से देखती है झोले को
विस्मय से कवि देखता है
दुनिया को
जो झोले से बाहर है।
एक दिन Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-12571835523230352292015-10-04T11:30:00.000+05:302015-10-04T11:30:43.259+05:30मेरी आत्मा, पत्थर और ऊषा तुम - राकेश रोहित
कविता
मेरी आत्मा, पत्थर और
ऊषा तुम
- राकेश रोहित
ऐसा होता है एक दिन
कि पथरीले रास्तों पर आते- जाते
मेरी आत्मा से एक पत्थर चिपक जाता है
फिर जितनी
बार हिलाओ
मेरी खोखली
देह में बजता है वह पत्थर!
दुनिया के सारे शीशे दरक जाते हैं
जब मैं अपने हाथ में अपनी आत्मा लेकर
खड़ा होता हूँ
उन शीशों के सामने
तब मैं देखता हूँ
मेरे हाथ में मेरी आत्मा नहीं एक पत्थर
है
जिसमें चमकता है आत्मा का स्पर्श!
Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-17330812289541354062015-10-01T18:35:00.000+05:302015-10-01T18:35:29.573+05:30मैंने कितनी बार कहा है - राकेश रोहित
कविता
मैंने कितनी बार कहा है
- राकेश रोहित
मेरे जीवन,
मेरी स्मृति में वह क्या है
जो सुंदर है
और तुम नहीं हो!
उपमाएं सारी पुरानी हैं
पर घटाओं से बिखरे बाल में
कुछ है जो नया है
और वह तुम्हारी हया है।
युगल कपोत सी निश्छल
तुम्हारे वक्ष की उड़ान
शर्मीले गालों पर थरथराता
चुम्बन का निशान!
... और समय
कब से वहीं ठहरा है
तुमने सुना नहीं
मैंने कितनी बार कहा है।
Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-4410204320331511142015-09-27T20:18:00.000+05:302015-09-27T20:51:16.681+05:30वे तितली नहीं मांग रहीं... - राकेश रोहित
पुस्तक समीक्षा
वे तितली नहीं मांग रहीं...
- राकेश रोहित
कृष्णा सोबती
एक रचना
कहीं-न-कहीं अस्तित्व की तलाश होती है क्योंकि केवल व्यतीत के पुनर्जीवन में रचना की
संपूर्णता की समाई नहीं होती पर यह स्थिति और महत्वपूर्ण हो जाती है जब एक रचना 'जो है' की तलाश से आगे बढ़ कर 'नहीं होने' का
होना संभव करती है। यह अस्तित्व के आविष्कार की वह प्रक्रिया है जो इस नष्ट होती दुनिया
में उन Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-45104388538033691612015-09-16T13:05:00.001+05:302015-09-16T13:05:56.986+05:30कवि, पहाड़, सुई और गिलहरियां - राकेश रोहित
कविता
कवि, पहाड़, सुई और
गिलहरियां
- राकेश रोहित
पहाड़ पर कवि घिस
रहा है
सुई की देह
आवाज से टूट जाती है
गिलहरियों की नींद!
पहाड़ घिसता हुआ कवि
गाता है हरियाली का गीत
और पहाड़ चमकने लगता है आईने जैसा!
फिर पहाड़ से फिसल
कर गिरती हैं गिलहरियां
वे सीधे कवि की नींद में आती हैं
और निद्रा में डूबे कवि से पूछती
हैं
सुनो कवि तुम्हारी सुई कहाँ है?
बहुत दिनों बाद उस
दिन
कवि को पहाड़ का Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-23697070831773542442015-09-10T13:44:00.000+05:302015-09-10T13:45:47.379+05:30सुमन प्रसून तुमको सुनते हुए - राकेश रोहित
कविता
सुमन प्रसून तुमको सुनते हुए
- राकेश रोहित
वह सामने कविता पढ़
रही थी
कविता पढ़ते हुए हिलती थी उसकी
गर्दन
और शब्द रूक कर देखते थे
उसकी सांसों में अटकी हवा!
मैं कहना चाहता था
कविता पढ़ते हुए
तुम स्मृतियों में कहीं खो जाती
हो
और नम हो गयी मेरी आँखें!
उसके होठों पर खिलती हुई हँसी थी
जब वह चुपके से पोंछ रही थी
एक अकेला आँसू।
उसने मुझे देखते हुए
देखा
और हँस पड़ी कविता सुनाकर Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-82425608184349585762015-09-02T14:46:00.000+05:302015-09-02T14:51:13.696+05:30दो कविताएँ : प्यार और ब्रेकअप - राकेश रोहित
(नोट: दो कविताएँ हैं। पहली कविता प्यार के लिए और दूसरी
ब्रेकअप की कविता! आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी दोनों में से कौन आपको अधिक पसंद है?
तुलना के लिए नहीं कविता को लेकर मनुष्य के मन में होने वाली जटिल अंतःक्रियाओं को
समझने के लिए! इसलिए आपसे अनुरोध है कि कृपया अपनी राय से अवगत करायें। आपका बहुत धन्यवाद!)
(पहली कविता प्यार के लिए)
कोलाहल में प्यार
- राकेश रोहित
कभी- Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-15138194203726380892015-08-08T12:17:00.001+05:302015-08-08T12:19:15.192+05:30एक कविता उसके लिए जिसे मैं नहीं जानता हूँ - राकेश रोहित
कविता
एक कविता उसके लिए
जिसे मैं नहीं जानता हूँ
- राकेश रोहित
इस विराट विश्व में
मैं मनुष्य की तरह प्रवेश करता
हूँ
31 दिसंबर को रात 11 बजकर 58
मिनट पर
बैठ जाता हूँ डायनासोर के जीवाश्म
पर
धीरे- धीरे पैर फैलाता हँ
और कम पड़ने लगती है मेरे सांस
लेने की जगह!
सारे बिखरे खिलौनों
के बीच
सर उठाये कहीं मेरी क्षुद्रता
हाथों में हवा समेटने की जिद कर
रही है
अनजान इससे कि ब्रह्मांड Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-3456059289442723142015-08-01T10:51:00.002+05:302015-08-01T10:52:20.286+05:30मुझे ले चल पार - राकेश रोहित
कविता
मुझे ले चल पार
- राकेश रोहित
नाव देखते ही लगता
है
जैसे हम डूब गए होते अगर यह नाव
नहीं होती
डगमग डोलती है नाव
और संग डोलता है मन
स्मृतियों की एक नदी
में धप्प गिरता है माटी का एक
चक्खान
धीरे- धीरे भीगता है सूखी आँखों
का कोर!
नाव में शायद हमारे
पूर्वजों की स्मृतियां हैं
जब किसी अंधेरी रात वे किनारों
की तलाश में थे
और गरज रहा था घन घनघोर
और तभी कोई डर समा गया था
उनके गुणसूत्रों Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-66182123456480828242015-07-22T19:12:00.002+05:302015-07-22T19:14:28.331+05:30पीले फूल और फुलचुही चिड़िया - राकेश रोहित
कविता
पीले फूल और फुलचुही
चिड़िया
- राकेश रोहित
वो आँखें जो समय
के पार देखती हैं
मैं उन आँखों में देखता हूँ।
उसमें बेशुमार फूल खिले हैं
पीले रंग के
और लंबी चोंच वाली एक फुलचुही
चिड़िया
उड़ रही है बेफिक्र उन फूलों
के बीच।
सपने की तरह सजे
इस दृश्य में
कैनवस सा चमकता है रंग
और धूप की तरह खिले फूलों के
बीच
संगीत की तरह गूंजती है
चिड़िया की उड़ान
पर उसमें नहीं दिखता कोई
मनुष्य!
सृष्टि Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-643518351467829562015-07-10T15:54:00.003+05:302015-07-11T12:51:28.787+05:30समय के बारे में एक कविता - राकेश रोहित
कविता
समय के बारे में एक कविता
- राकेश रोहित
किसी समय को जानने के कई तरीके हैं
उनमें से एक यह है कि आप जानें
कि कौन सो रहा है
और जाग कौन रहा है?
माँ जानती है जब सो रहा है बच्चा
तो चुपके से चूल्हे पर अदहन चढ़ा
देने का
और बासी रोटी
नमक प्याज के साथ गिल लेने का
समय है।
बाहर आवारा घूम रहा लड़का
जो फिर- फिर हार जाता है कर नौकरी का जुगाड़
जानता कब पिता के सोने का वक्त
है
और कब माँ के Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-10842154697010111592015-07-09T13:06:00.000+05:302015-07-09T13:06:07.782+05:30कविता नहीं यह - राकेश रोहित
कविता
कविता नहीं यह
- राकेश रोहित
मेरे पास नहीं हैं उतनी कविताएँ
जितने धरती पर अनदेखे अनजाने फूल हैं
आकाश में न गिने गये तारे हैं
और हैं जीवन में अनगिन दुख!
लौट आता हूँ रोज मैं अपनी भाषा में
तलाशता हुए तुम्हें ऐ मेरी खोई हुई आत्मा
निहारता हूँ परिधान बदलते सच को
निरखता हूँ कैसा है उसका अनिर्वचनीय रूप!
उत्सव करते हैं सूखे फूल और जीर्ण पात
हर बार कहने से Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-62752471153121716502015-07-04T18:02:00.000+05:302015-07-04T20:17:11.901+05:30अँधेरी खिड़कियों के अंदर का अँधेरा - राकेश रोहित
पुस्तक समीक्षा / पहला उपन्यास
अँधेरी खिड़कियों के अंदर का अँधेरा
- राकेश रोहित
अनिरुद्ध उमट
अनिरुद्ध
उमट उन रचनाकारों में से हैं जिन्होंने अपने कथा शिल्प को लेकर एक खास पहचान बनायी
है पर उनके पहले उपन्यास ‘अँधेरी खिड़कियाँ’ को पढ़ने से ऐसा लगता है कि उनके रचनाकर्म की खासियत उसका
शिल्प नहीं वरन वह अनछुआ कथा-क्षेत्र है जो उनकी रचनात्मकता की पहचान भी है और
उसकी ताकत भी। विवाह की Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-37895696357620754752015-06-19T19:54:00.000+05:302015-06-19T19:56:06.316+05:30एक कविता पेड़ के लिए - राकेश रोहित
कविता
एक कविता पेड़ के लिए
- राकेश रोहित
वह छोटे पत्तों और बड़ी छायाओं वाला
पेड़ था
जिसकी छांव में ठहरी थी चंचल हवा
और
वहीं टहनियों में फंसी
एक
पतंग डोल रही थी!
शायद
उतारने की कोशिश में फट गया था
पतंग
का किनारा
उलझ
गये थे धागे
यद्यपि
वहां कोई न था
पर
किसी बच्चे की हसरत वहीं शायद
पतंग
के गिरने के इंतजार में खड़ी थी
और
इन सबसे बेपरवाह था पेड़
मुझे
लगा शायद बहुत अकेला है यह पेड़।
पेड़
Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-58563268498182073122015-06-04T21:23:00.000+05:302015-06-04T22:36:24.799+05:30सुबह होने से कुछ क्षण पहले की कविता - राकेश रोहित
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सुबह होने से कुछ
क्षण पहले की कविता
- राकेश रोहित
उनका अपनी बातों पर
जोर है
इतना जोर दे कर कहते हैं
वे अपनी बातों की बात
कि एक दिन अपना ही दुख छोटा लगने
लगता है
सस्ती लगने लगती है अपनी ही जान!
अपने मन की ही आवाज को
छुपा लेने की इच्छा होने लगती
है
Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-7192211589384872982015-06-01T09:07:00.000+05:302015-06-01T09:19:31.759+05:30घास हरी नहीं है - राकेश रोहित
कविता
घास हरी नहीं है
- राकेश रोहित
घास हरी नहीं है
उसने कहा।
अगली बार उसने जोर दे कर कहा
घास हरी नहीं है
वस्तुतः यह पीली हो चुकी है।
यह सिर्फ पर्यावरण का मसला नहीं है
यह हमारे सौन्दर्य बोध से भी जुड़ा है
कि हरी होनी चाहिए घास,
उसने फिर कहा
फिर- फिर कहा!
मैंने एक दिन उसे समझाना चाहा
हाँ पीली पड़ गयी है घास
और पीले पड़ गये हैं फूल भी
इतनी गर्म है हवा
कि Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-79721321278949872102015-05-02T20:52:00.000+05:302015-05-03T15:44:39.319+05:30चिड़िया की आँख - राकेश रोहित
कविता
चिड़िया की आँख
- राकेश रोहित
शर संधान को तत्पर
व्यग्र हो रहे हैं धनुर्धर
वे देख रहे हैं केवल चिड़िया की
आँख!
यह कैसा कलरव है
यह कैसा कोलाहल है?
जो गुरूओं को सुनाई नहीं देता
अविचल आसन में बैठे वे
नहीं दिखाई देता उनको
चिड़िया की आँखों का भय।
यह धनुर्धरों के दीक्षांत
का समय है
राजाज्ञा के दर्प से तने हैं धनुष
और दूर दीर्घाओं मे करते हैं कवि पुकार-
राजन चिड़िया की आँख से Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4885104303513259020.post-29576447741699710932015-04-22T10:00:00.000+05:302015-04-22T10:04:02.980+05:30लौटने की जगह - राकेश रोहित
कविता
लौटने की जगह
- राकेश रोहित
जीवन के कुछ बारीक
सत्य
हमारे अंदर ही छुपे
हुए हमारे दुख थे
जिन्हें हम धूप दिखाने
से डरते रहे
और प्रार्थना में
रूंधता रहा हमारा गला।
एक दिन सुंदर नृत्य
की समाप्ति पर
तालियाँ बजाते हुए हम रो पड़े
कैसे नचाती रही जिंदगी
और दर्शनातुर लोग
देखते रहे यह खेल!
जब लौटने की इच्छा बेधती है हृदय
नहीं बची है लौटने
की जगह
कितनी प्रार्थनाओं
में पृथ्वी
Hindi Sahityahttp://www.blogger.com/profile/00438869924246494504noreply@blogger.com0