Monday, 21 October 2013
Friday, 4 October 2013
पंचतंत्र, मेमने और बाघ - राकेश रोहित
कविता
पंचतंत्र, मेमने और बाघ
- राकेश रोहित
पानी की तलाश में मेमने
पंचतंत्र की कहानियों से बाहर निकल आते हैं
और हर बार पानी के हर स्रोत पर
कोई बाघ उनका इंतजार कर रहा होता है.
मेमनों के पास तर्क होते हैं,
और बाघ के पास बहाने.
मेमने हर बार नये होते हैं
और बाघ नया हो या पुराना
फर्क नहीं पड़ता.
जिसने यह कहानी लिखी
वह पहले ही जान गया था -
"मेमने अपनी प्यास के लिए मरते हैं
और ताकतवर की भूख तर्क नहीं मानती!"
- राकेश रोहित
पानी की तलाश में मेमने
पंचतंत्र की कहानियों से बाहर निकल आते हैं
और हर बार पानी के हर स्रोत पर
कोई बाघ उनका इंतजार कर रहा होता है.
मेमनों के पास तर्क होते हैं,
और बाघ के पास बहाने.
मेमने हर बार नये होते हैं
और बाघ नया हो या पुराना
फर्क नहीं पड़ता.
जिसने यह कहानी लिखी
वह पहले ही जान गया था -
"मेमने अपनी प्यास के लिए मरते हैं
और ताकतवर की भूख तर्क नहीं मानती!"
ताकतवर की भूख तर्क नहीं मानती / राकेश रोहित |
Friday, 16 August 2013
एक अच्छी कविता लिखकर उदास हो जाता है कवि - राकेश रोहित
कविता
एक अच्छी कविता लिखकर उदास हो जाता है कवि
- राकेश रोहित
जो सपने नहीं देखते
वे कविता का क्या करते हैं?
अंततः एक कवि को
स्वप्न-द्रष्टा होना होता है।
आश्चर्य नहीं,
एक अच्छी कविता लिखकर उदास हो जाता है कवि
वह जानता है बहुत कठिन होता है
अच्छी कविता का जीवन!
आसान नहीं होती राजपथ पर
हजार सपनों से सजे बचपन की राह।
अंधेरे ब्रह्मांड में जो तारों को
हजार सूरज की तरह चमकाता है
कोई नहीं जानता इस कृष्ण- विवर में
कवि इतनी ऊर्जा कहाँ से लाता है?
उम्मीद से भरे शब्द
कवि के लिए
कविता में एक सपना बुनते हैं!
जब दिल देता नहीं साथ,
गहन निराशा में
हम कविता की सुनते हैं।
है ऐसे में सहज यह अचरज
जो सपने नहीं देखते
वे कविता का क्या करते हैं?
वे कविता का क्या करते हैं?
अंततः एक कवि को
स्वप्न-द्रष्टा होना होता है।
आश्चर्य नहीं,
एक अच्छी कविता लिखकर उदास हो जाता है कवि
वह जानता है बहुत कठिन होता है
अच्छी कविता का जीवन!
आसान नहीं होती राजपथ पर
हजार सपनों से सजे बचपन की राह।
अंधेरे ब्रह्मांड में जो तारों को
हजार सूरज की तरह चमकाता है
कोई नहीं जानता इस कृष्ण- विवर में
कवि इतनी ऊर्जा कहाँ से लाता है?
उम्मीद से भरे शब्द
कवि के लिए
कविता में एक सपना बुनते हैं!
जब दिल देता नहीं साथ,
गहन निराशा में
हम कविता की सुनते हैं।
है ऐसे में सहज यह अचरज
जो सपने नहीं देखते
वे कविता का क्या करते हैं?
एक अच्छी कविता लिखकर उदास हो जाता है कवि / राकेश रोहित |
Wednesday, 10 July 2013
मुझे लगता है मंगल ग्रह पर एक कविता धरती के बारे में है - राकेश रोहित
कविता
मुझे लगता है मंगल ग्रह पर एक कविता धरती के बारे में है
- राकेश रोहित
मुझे लगता है मंगल ग्रह
पर बिखरे
असंख्य पत्थरों में
कहीं
कोई एक कविता धरती के बारे में है!
आँखों से बहे आंसू
जो आँखों से बहे और कहीं
नहीं पहुंचे
आवाज जो दिल से निकली और
दिल तक नहीं पहुंची!
उसी कविता की बीच की
किन्हीं पंक्तियों में
उन आंसुओं का जिक्र है
उस आवाज की पुकार है.
संसार के सभी असंभव दुःख
जो नहीं होने थे और हुए
मुझे लगता है उस कविता
में
उन दुखों की वेदना की
आवृत्ति है.
पता नहीं वह कविता लिखी
जा चुकी है
या अब भी लिखी जा रही है
क्योंकि धरती पर अभी-अभी
लुप्त हुई प्रजाति का
जिक्र उस कविता में है.
मुझे लगता है संसार के
सबसे सुंदर सपनों में
कट कर भटकती
उम्मीद की पतंग
मंगल ग्रह के ही किसी
वीराने पहाड़ से टकराती है
और अब भी जब इस सुंदर धरती
को बचाने की
कविता की कोशिशें विफल
होती है
मंगल ग्रह पर तूफान उठते
हैं.
मुझे लगता है
जैसे धरती पर एक कविता
मंगल ग्रह के बारे में
है
ठीक वैसे ही मंगल ग्रह
पर बिखरे
असंख्य पत्थरों में
कहीं कोई एक कविता धरती
के बारे में है!![]() |
मुझे लगता है... / राकेश रोहित |
Friday, 21 June 2013
सब्जियाँ, रंग और मनुष्य - राकेश रोहित
कविता
सब्जियाँ, रंग और मनुष्य
- राकेश रोहित
दोस्तों! यदि ऐसे ही बाजार
चुराता रहा जीवन का स्वाद,
एक पीढ़ी पुरातत्वविदों की तरह
चीजों के नाम में चीजों को तलाशेगी.
सब्जियाँ, रंग और मनुष्य
- राकेश रोहित
सब्जियों का रंग बचाने
में
उनका स्वाद छूटता जाता है.
उनका स्वाद छूटता जाता है.
कोई हर दिन, सुबह-शाम
रंगता रहता चीजों को.
रंगता रहता चीजों को.
जैसे कोई मुरझाये
होठों को
रंगता है मुस्कान की तरह!
जैसे कोई परछाई घर से निकलती है
रंगकर अपने को मनुष्य की तरह.
रंगता है मुस्कान की तरह!
जैसे कोई परछाई घर से निकलती है
रंगकर अपने को मनुष्य की तरह.
दोस्तों! यदि ऐसे ही बाजार
चुराता रहा जीवन का स्वाद,
एक पीढ़ी पुरातत्वविदों की तरह
चीजों के नाम में चीजों को तलाशेगी.
सब्जियाँ, रंग और मनुष्य / राकेश रोहित |