कविता
एक दिन वह निकल आयेगा कविता से बाहर
- राकेश रोहित
हारा हुआ आदमी पनाह
के लिए कहाँ जाता है,
कहाँ मिलती है उसे सर टिकाने की जगह?
कहाँ मिलती है उसे सर टिकाने की जगह?
आपने इतनी माया रच
दी है कविता में
कि अचंभे में है अँधेरे में खड़ा आदमी!
आपके कौतुक के लिए वह हँसता है जोर- जोर
आपके इशारे पर सरपट भागता है।
कि अचंभे में है अँधेरे में खड़ा आदमी!
आपके कौतुक के लिए वह हँसता है जोर- जोर
आपके इशारे पर सरपट भागता है।
एक दिन वह निकल आयेगा
कविता से बाहर
चमत्कार का अंगोछा झाड़ कर आपकी पीठ पर
कहेगा, कवि जी कविता बहुत हुई
आते हैं हम खेतों से
अब जोतनी का समय है।
चमत्कार का अंगोछा झाड़ कर आपकी पीठ पर
कहेगा, कवि जी कविता बहुत हुई
आते हैं हम खेतों से
अब जोतनी का समय है।
एक दिन वह निकल आयेगा कविता से बाहर / राकेश रोहित |
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