मेरे अंदर एक गुस्सा है...
- राकेश रोहित
मेरे अंदर एक गुस्सा
है, गुस्से को दबाये बैठा हूँ
मैं जिस गम के दरिया में डूबा हूँ, उस गम को भुलाये बैठा हूँ.
लहरों ने साहिल पर तोड़ दिये, घरौंदे कितने बचपन के
इन लहरों से मैं सपने की उम्मीद लगाये बैठा हूँ.
दुनिया अनजानी हँसती थी - मंजिल का पता भी भूल गये?
वो क्या जाने मैं कागज की कश्ती बचपन से बनाये बैठा हूँ.
वो रात बड़ी अंधियारी थी, जब तुम आये मेरे घर में
तब से आंगन में सौ-सौ दीपक यादों के जलाये बैठा हूँ.
एक जंग जैसे है दुनिया, एक दिन जीता एक दिन हारा
कुछ मन में छुपाये बैठा हूँ, कुछ सब को बताए बैठा हूँ.
मैं जिस गम के दरिया में डूबा हूँ, उस गम को भुलाये बैठा हूँ.
लहरों ने साहिल पर तोड़ दिये, घरौंदे कितने बचपन के
इन लहरों से मैं सपने की उम्मीद लगाये बैठा हूँ.
दुनिया अनजानी हँसती थी - मंजिल का पता भी भूल गये?
वो क्या जाने मैं कागज की कश्ती बचपन से बनाये बैठा हूँ.
वो रात बड़ी अंधियारी थी, जब तुम आये मेरे घर में
तब से आंगन में सौ-सौ दीपक यादों के जलाये बैठा हूँ.
एक जंग जैसे है दुनिया, एक दिन जीता एक दिन हारा
कुछ मन में छुपाये बैठा हूँ, कुछ सब को बताए बैठा हूँ.
कुछ मन में छुपाये बैठा हूँ, कुछ सब को बताए बैठा हूँ / राकेश रोहित |