कविता
मैंने कितनी बार कहा है
- राकेश रोहित
मेरे जीवन,
मेरी स्मृति में वह क्या है
जो सुंदर है
और तुम नहीं हो!
उपमाएं सारी पुरानी हैं
पर घटाओं से बिखरे बाल में
कुछ है जो नया है
और वह तुम्हारी हया है।
युगल कपोत सी निश्छल
तुम्हारे वक्ष की उड़ान
शर्मीले गालों पर थरथराता
चुम्बन का निशान!
... और समय
कब से वहीं ठहरा है
तुमने सुना नहीं
मैंने कितनी बार कहा है।
मैं
तुम बिन
दिन गिन
गिन!
तूने दुःख से
ढक ली अपनी देह
नहीं चाहता तुझे तेरा पति
तू किसी स्कूल में अध्यापिका है।चित्र / के. रवीन्द्र |
प्रेम-विरह की व्यथा -कथा .....
ReplyDeleteबहुत सुंदरता से शब्दों में आकार लेती हुई !