कविता
मुझे लगता है मंगल ग्रह पर एक कविता धरती के बारे में है
- राकेश रोहित
मुझे लगता है मंगल ग्रह
पर बिखरे
असंख्य पत्थरों में
कहीं
कोई एक कविता धरती के बारे में है!
आँखों से बहे आंसू
जो आँखों से बहे और कहीं
नहीं पहुंचे
आवाज जो दिल से निकली और
दिल तक नहीं पहुंची!
उसी कविता की बीच की
किन्हीं पंक्तियों में
उन आंसुओं का जिक्र है
उस आवाज की पुकार है.
संसार के सभी असंभव दुःख
जो नहीं होने थे और हुए
मुझे लगता है उस कविता
में
उन दुखों की वेदना की
आवृत्ति है.
पता नहीं वह कविता लिखी
जा चुकी है
या अब भी लिखी जा रही है
क्योंकि धरती पर अभी-अभी
लुप्त हुई प्रजाति का
जिक्र उस कविता में है.
मुझे लगता है संसार के
सबसे सुंदर सपनों में
कट कर भटकती
उम्मीद की पतंग
मंगल ग्रह के ही किसी
वीराने पहाड़ से टकराती है
और अब भी जब इस सुंदर धरती
को बचाने की
कविता की कोशिशें विफल
होती है
मंगल ग्रह पर तूफान उठते
हैं.
मुझे लगता है
जैसे धरती पर एक कविता
मंगल ग्रह के बारे में
है
ठीक वैसे ही मंगल ग्रह
पर बिखरे
असंख्य पत्थरों में
कहीं कोई एक कविता धरती
के बारे में है!![]() |
मुझे लगता है... / राकेश रोहित |