Saturday 28 February 2015

जिजीविषा - राकेश रोहित

कविता
जिजीविषा
- राकेश रोहित

डूबने वाले जैसे तिनका बचाते हैं
मैं अपने अंदर एक इच्छा बचाता हूँ।

कहने वालों ने नहीं बताया
नूह की नाव को
यही इच्छा
खे रही थी
प्रलय प्रवाह में!
संसार की सबसे सुंदर कविताएँ
और बच्चे की सबसे मासूम हँसी
इसी इच्छा के पक्ष में खड़ी होती हैं।

आप कभी गेंद देखें
और पास खड़ा देखें छोटे बच्चे को
आप जान जायेंगे इच्छा कहाँ है!

जिजीविषा / राकेश रोहित