Wednesday 22 April 2015

लौटने की जगह - राकेश रोहित

कविता
लौटने की जगह
- राकेश रोहित 

जीवन के कुछ बारीक सत्य
हमारे अंदर ही छुपे हुए हमारे दुख थे
जिन्हें हम धूप दिखाने से डरते रहे
और प्रार्थना में रूंधता रहा हमारा गला।

एक दिन सुंदर नृत्य की समाप्ति पर
तालियाँ बजाते हुए हम रो पड़े
कैसे नचाती रही जिंदगी
और दर्शनातुर लोग देखते रहे यह खेल!

जब लौटने की इच्छा बेधती है हृदय
नहीं बची है लौटने की जगह
कितनी प्रार्थनाओं में पृथ्वी
चाहा था मैंने तुम्हें
अपने पैरों के ठीक नीचे
किसी पुरातन भरोसे की तरह!

कैसे हम अंधेरे में गुम हुई इच्छाएं हैं!
और कैसे चाह का चँवर
डुलता है किसी के सर पर?
कैसे इस अपरिमित जगत में
जीवन पूछता है
मेरी जगह कहाँ है?

निराशा के कैनवस सा
टंगा हुआ है जो यह दृश्य
मैं इसपर नित- रोज निरंतर
टांकता हूँ शब्द का फूल
और फिर उसे कविता की तरह खिलते देखता हूँ।

हजार उदास रातों में समेटता रहता हूँ
कविता में अपना बिखरना
हर सुबह उठकर उसे मैं
आत्मा की तरह चूमता हूँ
और हो जाता हूँ अनंग
घुलता हुआ इस जीवन में।

चित्र / के. रवीन्द्र 

Wednesday 1 April 2015

उदास लड़की, चन्द्रमा और गाने वाली चिड़िया - राकेश रोहित

कविता
उदास लड़की, चन्द्रमा और गाने वाली चिड़िया
- राकेश रोहित 


एक दिन चन्द्रमा ने लड़की से पूछा
चित्र / के. रवीन्द्र 
एक दिन चन्द्रमा ने लड़की से पूछा- 
इजाजत दो
तो तुम्हारी आँखों में छुप जाऊँ!
लड़की मुस्कुरायी और गहरा हो गया
उसकी आँखों का रंग
और उसकी मुस्कराहटों
में बरसने लगी चाँदनी।


अकेली लड़की धरती पर सवार
करती थी आकाशगंगा की सैर
और देखती थी आकाश
जहाँ चाँद की जगह थी पर चाँद नहीं था
और हजार तारे टिमटिमाते थे
सारी - सारी रात!


वह चंचल बहती रही / वह अल्हड़ बहती रही
चित्र / के. रवीन्द्र 
वह नदी की तरह बहती रही                
और सोना बिखरता रहा झील पर
वह चंचल बहती रही
वह अल्हड़ बहती रही।

अब वह खूब भागती थी
खूब बातें करती थी
और बात - बात पर खिलखिलाती थी
पहाड़ से उतरते झरने की तरह।

पर होठों की हँसी छुपा नहीं पाती थी
आँखों का पुराना दुख
और बारिश के बाद बहती हवा की तरह
भींग जाती थी उसकी आवाज
जब वह गा रही होती थी
कोई विस्मृत होता गीत!


एक दिन अनाम फूलों के बीच गुजरते हुए
उसने अचानक
एक बच्चे को जोर से चिपटा लिया
और रोने लगी
जैसे टूटती है बांध में बंधी नदी
सारी रात की खामोश बारिशों के बाद।

इसके बाद जो हुआ वह जादू की तरह था
बच्चे ने, जिसे नहीं आती थी भाषा
अपनी नन्हीं हथेली उसके गाल पर टिकाकर
साफ शब्दों में पूछा तुम रो क्यों रही हो?
यह बात वहाँ से गुजरती चिड़िया ने सुना
और गाने लगी उदासी का गीत!

अब भी किसी चाँदनी रात को
चाँद पर चिड़िया की छाया साफ दिखाई देती है
और चाँद जब छुप जाता है
पृथ्वी की कक्षा से दूर
चिड़िया की आवाज से टूट जाती है
उदास लड़की की नींद!

उदास लड़की और गाने वाली चिड़िया
चित्र / के. रवीन्द्र