Thursday 23 January 2014

उम्मीद का कोई शीर्षक - राकेश रोहित

कविता
उम्मीद का कोई शीर्षक 
- राकेश रोहित

मैं नष्ट हो रही दुनिया से

एक सहमा हुआ शब्द उठाता हूँ
मैं उसे अपनी सबसे प्यारी कविता में
बची रहने की इच्छा के साथ टांक देता हूँ.


हर असंभव के विरुद्ध एक जुगत की तरह
मैं आसमान को रंग-बिरंगी पतंगों से भर देना चाहता हूँ.



इस नश्वर दुनिया में एक हठ की तरह
मैं हर बार बचा लाता हूँ -
कविता के लिए उम्मीद का कोई शीर्षक!

उम्मीद का कोई शीर्षक / राकेश रोहित