Saturday 2 January 2016

वृक्ष के सपने में उड़ान है - राकेश रोहित

कविता
वृक्ष के सपने में उड़ान है
- राकेश रोहित

वह इतनी अकेली थी सफर में
कि वृक्ष के नीचे खड़ी हो गयी
वृक्ष ने उसे देखा और हरा हो गया!

उसके मन में दुख था
सो झरे कुछ पत्ते
और दुख से पीले पड़ गये!

कहना था उसको
सो गाने लगा पेड़
और घर लौटीं चिड़ियाएं संग संगीत लेकर!

वह रो रही थी
तो वृक्ष ने डाल दी चादर अंधेरे की
जड़ों में भरते रहे उसके आंसू और वह वृक्ष हो गयी!

सुंदर सुबहों में वह हँसती चिड़ियाओं के साथ उठी
उसने विस्तृत नभ में फैलाए अपने हाथ
पर निश्चल जड़ों ने रोक लिया उसे!

वह अब वृक्ष थी
वह सफर का सपना देखती थी
और तेज हवाओं संग उड़ जाना चाहती थी!

वृक्ष के सपने में उड़ान है / राकेश रोहित 

7 comments:

  1. सुंदर कविता।

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  2. अच्छी कविता, जबकि चिड़ियाएँ और चिड़ियाओं का प्रयोग खटका।

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  3. Aap apne muhaavare mein likhte hain. Yahan bhi dikh raha hai. Kavita ke chaaron tatvon mein kakpna aapki lekhni mein variyata paati hai. Yah bura nhi kyonki aap sarokaar nhi chhodte. Achchhi kavita hai. Chidhiyain aur chidhiyaon likhna prayog nhi kavydosh paidaa kar rha hai. Dekh Len. Shubhkaamnayen!!
    - Kamal Jeet Choudhary

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  4. 'चिड़ियाएँ' और 'चिड़ियाओं' शब्द के प्रयोग पर आप मित्रों की आपत्तियों के लिए हम हृदय से आभारी हैं और इस पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. इस संबंध में आप सबों का इस ओर ध्यान आकर्षित करना है कि कई वरिष्ठ कवियों ने 'चिड़ियाएँ' और 'चिड़ियाओं' शब्दों का प्रयोग किया है. वरिष्ठ कवि आदरणीय चंद्रकांत देवताले जी की कविता ‘बालम ककड़ी बेचने वाली लड़कियाँ’ में चिड़ियाएँ शब्द आया है तो उन्हीं की कविता ‘दो लड़कियों का पिता होने से’ में उनकी पंक्ति है “मैं पिता हूँ/ दो चिड़ियाओं का”. आदरणीय लीलाधर जगूड़ी जी की कविता ‘दृश्य’ में उनकी पंक्तियां हैं- “झाड़ी के ऊपर/ मँडराती रहीं/ केंकती चिड़ियाएँ”. ऐसे और भी कई एक उदाहरण हैं. यह सच है कि भाषा बहता नीर है पर इसके साथ ही व्याकरण और प्रयोग की दृष्टि से इस पर विमर्श के लिए आप सभी विज्ञ मित्रों की राय अपेक्षित है.
    आप मित्रों का इस ओर ध्यान दिलाने के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद.

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  5. इको फेमिनिस्टिक। बहुत सुन्दर ।

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