Sunday 24 January 2016

पानी – राकेश रोहित

लघुकथा
पानी 
– राकेश रोहित

"पानी पी लूँ?" उसने विनम्रता से पूछा।
"पानी के लिए पूछते हैं! पीने के लिए ही तो रखा है। जरूर पीजिए!" कहते हुए वे थोड़ा गर्व से भर गये। "यही तो हमारी सभ्यता- संस्कृति है। पानी हम सबको पिलाते हैं। अरे हमारे गांव में तो...! " उन्होंने एक लंबी कहानी शुरू की।
पानी पीकर पीने वाले ने राहत की सांस ली और कृतज्ञता से कहा- "धन्यवाद साहब, बहुत जोर की प्यास लगी थी।"
उनकी कहानी जारी थी। पीने वाला सलाम कर चला गया।
उसके जाते ही उन्होंने मुँह में चुभल रहा मसाला कोने में थूका और मेज के ड्राअर से मिनरल वाटर की बोतल निकाल कर पानी पीने लगे।
"गट- गट- गट!"
उनके चेहरे पर तृप्ति साफ दिख रही थी।

पानी / राकेश रोहित

Saturday 2 January 2016

वृक्ष के सपने में उड़ान है - राकेश रोहित

कविता
वृक्ष के सपने में उड़ान है
- राकेश रोहित

वह इतनी अकेली थी सफर में
कि वृक्ष के नीचे खड़ी हो गयी
वृक्ष ने उसे देखा और हरा हो गया!

उसके मन में दुख था
सो झरे कुछ पत्ते
और दुख से पीले पड़ गये!

कहना था उसको
सो गाने लगा पेड़
और घर लौटीं चिड़ियाएं संग संगीत लेकर!

वह रो रही थी
तो वृक्ष ने डाल दी चादर अंधेरे की
जड़ों में भरते रहे उसके आंसू और वह वृक्ष हो गयी!

सुंदर सुबहों में वह हँसती चिड़ियाओं के साथ उठी
उसने विस्तृत नभ में फैलाए अपने हाथ
पर निश्चल जड़ों ने रोक लिया उसे!

वह अब वृक्ष थी
वह सफर का सपना देखती थी
और तेज हवाओं संग उड़ जाना चाहती थी!

वृक्ष के सपने में उड़ान है / राकेश रोहित