लघुकथा
पानी
– राकेश रोहित
"पानी पी लूँ?"
उसने विनम्रता से पूछा।
"पानी के लिए पूछते
हैं! पीने के लिए ही तो रखा है। जरूर पीजिए!" कहते हुए वे थोड़ा गर्व से भर
गये। "यही तो हमारी सभ्यता- संस्कृति है। पानी हम सबको पिलाते हैं। अरे हमारे
गांव में तो...! " उन्होंने एक लंबी कहानी शुरू की।
पानी पीकर पीने वाले ने राहत की सांस ली
और कृतज्ञता से कहा- "धन्यवाद साहब, बहुत जोर की प्यास लगी थी।"
उनकी कहानी जारी थी। पीने वाला सलाम कर
चला गया।
उसके जाते ही उन्होंने मुँह में चुभल रहा
मसाला कोने में थूका और मेज के ड्राअर से मिनरल वाटर की बोतल निकाल कर पानी पीने
लगे।
"गट- गट- गट!"
उनके चेहरे पर तृप्ति साफ दिख रही थी।
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पानी / राकेश रोहित |