मेरे अंदर एक गुस्सा है...
- राकेश रोहित
मेरे अंदर एक गुस्सा
है, गुस्से को दबाये बैठा हूँ
मैं जिस गम के दरिया में डूबा हूँ, उस गम को भुलाये बैठा हूँ.
लहरों ने साहिल पर तोड़ दिये, घरौंदे कितने बचपन के
इन लहरों से मैं सपने की उम्मीद लगाये बैठा हूँ.
दुनिया अनजानी हँसती थी - मंजिल का पता भी भूल गये?
वो क्या जाने मैं कागज की कश्ती बचपन से बनाये बैठा हूँ.
वो रात बड़ी अंधियारी थी, जब तुम आये मेरे घर में
तब से आंगन में सौ-सौ दीपक यादों के जलाये बैठा हूँ.
एक जंग जैसे है दुनिया, एक दिन जीता एक दिन हारा
कुछ मन में छुपाये बैठा हूँ, कुछ सब को बताए बैठा हूँ.
मैं जिस गम के दरिया में डूबा हूँ, उस गम को भुलाये बैठा हूँ.
लहरों ने साहिल पर तोड़ दिये, घरौंदे कितने बचपन के
इन लहरों से मैं सपने की उम्मीद लगाये बैठा हूँ.
दुनिया अनजानी हँसती थी - मंजिल का पता भी भूल गये?
वो क्या जाने मैं कागज की कश्ती बचपन से बनाये बैठा हूँ.
वो रात बड़ी अंधियारी थी, जब तुम आये मेरे घर में
तब से आंगन में सौ-सौ दीपक यादों के जलाये बैठा हूँ.
एक जंग जैसे है दुनिया, एक दिन जीता एक दिन हारा
कुछ मन में छुपाये बैठा हूँ, कुछ सब को बताए बैठा हूँ.
कुछ मन में छुपाये बैठा हूँ, कुछ सब को बताए बैठा हूँ / राकेश रोहित |
ji chahta hai mai bhi khol dun uljhe uno ke tarah zindagi ke sawalon ko ,pr ek chuppi si ghir aati hai.................kyon mn ka bhed kahen jg se jb koi bhi upchar na ho..........
ReplyDeletebahut khub..
ReplyDeleteNamaste Rakesh ji, maine apko abhi - abhi join kiya hai. Apke sare vichar kavita ya quote ke madhyam se padha, mujhe aapki soch bahut acchi lagti hai, ummid karta hun, aap aise hi likhte rahenge, aur khaskar "मेरे अंदर एक गुस्सा है.." to lajwab hai.
ReplyDeletehttp://rakeshranjan976.wordpress.com/2012/05/03/%E0%A4%A8-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%81/
Maine abhi khuchh dinon se net par likhne ka abhyas shuru kiya hai, kripya ise bhi padh kar comment kare.....
ReplyDeletehttp://rakeshranjan976.wordpress.com/
रचना अच्छी है।
ReplyDeleteWWW.YUVAAM.BLOGSPOT.COM
लहरों ने साहिल पर तोड़ दिये,घरौंदे कितने बचपन के
ReplyDeleteइन लहरों से मैं सपने की उम्मीद लगाये बैठा हूँ.
दुनिया अनजानी हँसती थी - मंजिल का पता भी भूल गये?
वो क्या जाने मैं कागज की कश्ती बचपन से बनाये बैठा हूँ.
Best lines ever i read.....
kuch mujhe yad rhta he or sab kuch bhulaye betha hu
ReplyDeleteवो रात बड़ी अंधियारी थी, जब तुम आये मेरे घर में
ReplyDeleteतब से आंगन में सौ-सौ दीपक यादों के जलाये बैठा हूँ. बहुत उम्दा बड़े नाजुक अहसासों में वेदना को पिरोये हुवे शब्द हैं बधाई
Umda!
ReplyDeleteitni sari baate sirf ek kavita me , bhai wah!!
ReplyDeleteitni sari baate sirf ek kavita me , bhai wah!!
ReplyDeletevery gud lage raho life jeete raho
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