Thursday 11 October 2012

ज्ञान की तरह अपूर्ण नहीं - राकेश रोहित

कविता 

ज्ञान की तरह अपूर्ण नहीं 
- राकेश रोहित 

हर रोज नया कुछ सीखता हूँ मैं
हर दिन बढ़ता है कुछ ज्ञान
ओ ईश्वर! मैं क्या करूं इतने ज्ञान का
हर दिन कुछ और कठिन होता जाता है जीवन.

पत्तों की तरह सोख सकूँ
धूप, हवा और चाँदनी
फूल की तरह खिलूँ
रंगों की ऊर्जा से भरा.

पकूं एक दिन फल की तरह
गंध के संसार में
फैल जाऊं बीज की तरह
अनंत के विस्तार में.

हरियाली की तरह बिखरा रहूँ
सृष्टि के समवाय में
ना कि ज्ञान की तरह
अपूर्ण, असहाय मैं!

हरसिंगार / राकेश रोहित 

3 comments:

  1. सृष्टि के समवाय में
    ना कि ज्ञान की तरह
    अपूर्ण, असहाय मैं!बेहतर तुक के साथ बेहतर प्रस्तुति ।

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  2. हरियाली की तरह बिखरा रहूँ
    सृष्टि के समवाय में
    ना कि ज्ञान की तरह
    अपूर्ण, असहाय मैं!

    बहुत सुन्दर भाव

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