Sunday 23 March 2014

असंभव समय में कविता - राकेश रोहित

कविता
असंभव समय में कविता 
- राकेश रोहित 

हर दिन वर्णमाला का एक अक्षर मैं भूल जाता हूँ
हर दिन टूट जाती है अंतर की एक लय
हर दिन सूख जाता है एक हरा पत्ता
हर दिन मैं तुमको खो देता हूँ जरा- जरा!


ऐसे असंभव समय में लिखता हूँ मैं कविता
जैसे इस सृष्टि में मैं जीवन को धारण करता हूँ
जैसे वीरान आकाशगंगा से एक गूँज उठती है
और गुनगुनाती है एक गीत अकेली धरा!!

असंभव समय में कविता / राकेश रोहित 

3 comments:

  1. bahut sundar v sarthak abhivyakti .aabhar

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  2. "ऐसे असंभव समय में लिखता हूँ मैं कविता
    जैसे इस सृष्टि में मैं जीवन को धारण करता हूँ
    जैसे वीरान आकाशगंगा से एक गूँज उठती है
    और गुनगुनाती है एक गीत अकेली धरा!!"
    बहुत सुन्दर कविता! - सुधीर अवस्थी

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  3. Behatreen Bhavabhivyakti !! bahut hi sunder!!

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