Wednesday 16 September 2015

कवि, पहाड़, सुई और गिलहरियां - राकेश रोहित

कविता
कवि, पहाड़, सुई और गिलहरियां
- राकेश रोहित

पहाड़ पर कवि घिस रहा है
सुई की देह
आवाज से टूट जाती है
गिलहरियों की नींद!

पहाड़ घिसता हुआ कवि
गाता है हरियाली का गीत
और पहाड़ चमकने लगता है आईने जैसा!

फिर पहाड़ से फिसल कर गिरती हैं गिलहरियां
वे सीधे कवि की नींद में आती हैं
और निद्रा में डूबे कवि से पूछती हैं
सुनो कवि तुम्हारी सुई कहाँ है?

बहुत दिनों बाद उस दिन
कवि को पहाड़ का सपना आता है
पर सपने में नहीं होती है सुई!

आप जानते हैं गिलहरियां
मिट्टी में क्या तलाशती रहती हैं?
कवि को लगता है वे सुई की तलाश में हैं
मैं नहीं मानता
सुई तो सपने में गुम हुई थी
और कोई कैसे घिस सकता है सुई से पहाड़?

पर जब भी मैं कोई चमकीला पहाड़ देखता हूँ
मुझे लगता है कोई इसे सुई से घिस रहा है
और फिसल कर गिर रही हैं गिलहरियां!
मैं हर बार कान लगाकर सुनना चाहता हूँ
शायद कोई गा रहा हो हरियाली का गीत
और गढ़ रहा हो सीढ़ियाँ
पहाड़ की देह पर!

गिलहरियां अपनी देह घिस रही हैं पहाड़ पर
और कवि एक सपने के इंतजार में है!

चित्र / राकेश रोहित 

2 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता राकेश जी ।शब्दों में ताजगी का अहसास है।

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