Sunday 24 January 2016

पानी – राकेश रोहित

लघुकथा
पानी 
– राकेश रोहित

"पानी पी लूँ?" उसने विनम्रता से पूछा।
"पानी के लिए पूछते हैं! पीने के लिए ही तो रखा है। जरूर पीजिए!" कहते हुए वे थोड़ा गर्व से भर गये। "यही तो हमारी सभ्यता- संस्कृति है। पानी हम सबको पिलाते हैं। अरे हमारे गांव में तो...! " उन्होंने एक लंबी कहानी शुरू की।
पानी पीकर पीने वाले ने राहत की सांस ली और कृतज्ञता से कहा- "धन्यवाद साहब, बहुत जोर की प्यास लगी थी।"
उनकी कहानी जारी थी। पीने वाला सलाम कर चला गया।
उसके जाते ही उन्होंने मुँह में चुभल रहा मसाला कोने में थूका और मेज के ड्राअर से मिनरल वाटर की बोतल निकाल कर पानी पीने लगे।
"गट- गट- गट!"
उनके चेहरे पर तृप्ति साफ दिख रही थी।

पानी / राकेश रोहित

11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-01-2016) को "मैं क्यों कवि बन बैठा" (चर्चा अंक-2232) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अच्छा कटाक्ष है. और हमने ऐसा होते हुए कई बार देखा है.

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  3. आपकी कविताए मेरे दिल को प्रकृति के रंगो से सराबोर कर देती है |

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  4. बहुत सुंदर सर! आपके संकल्पो की गहाराई अति सराहनिय है |

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  5. पानी
    हम का जानी
    कौन मुल्ला
    कौन ज्ञानी
    बेहतरीन लघु कथा
    कुछ ही शब्दों में
    ऊँच-नीच का भेद खोल दिया
    सादर

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. story choti thi lekin bat bahut badi thi

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  8. This comment has been removed by the author.

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