Thursday 26 January 2012

मेरी कविता में जाग्रत लोगों के दुःख हैं - राकेश रोहित


कविता 
मेरी कविता में जाग्रत लोगों के दुःख हैं 
- राकेश रोहित

मेरी कविता में जाग्रत लोगों के दुःख हैं.
मैं कल छोड़ नहीं आया,
मेरे सपनों के तार वहीं से जुड़ते हैं.

मैं सुबह की वह पहली धूप हूँ -
जो छूती है
गहरी नींद के बाद थके मन को.
मैं आत्मा के दरवाजे पर
आधी रात की दस्तक हूँ.

जो दौड कर निकल गए
डराता है उनका उन्माद
कोई आएगा अँधेरे से चलकर
बीतती नहीं इसी उम्मीद में रात.

मैं उठाना चाहता हूँ
हर शब्द को उसी चमक से
जैसे कभी सीखा था
वर्णमाला का पहला अक्षर.
रुमान से झांकता सच हूँ  
हर अकथ का कथन
मैं हजार मनों में रोज खिलता
उम्मीद का फूल हूँ.

मेरी कविता में हजारों लोगों की
बसी हुई है
एक जीवित-जागृत दुनिया.
मैं रोज लड़ता हूँ
प्रलय की आस्तिक आशंका से
मैं उस दुनिया में रोज प्रलय बचाता हूँ.

मेरी कविता में उनकी दुनिया है
जिनकी मैं बातें करता हूँ
कविता में गर्म हवाओं का अहसास
उनकी साँसों से आता है.


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