कविता
सोयी हुई स्त्री, कविता में
- राकेश रोहित
दोस्तों गजब हुआ, यह अल्लसबेरे...
मैंने पढ़ी एक कविता स्त्रियों के बारे में.
कविता थी पर सच-सा उसका बयान था,
कविता सोयी हुई स्त्रियों के बारे में थी.
सोये हुए के बारे में बात करना अक्सर आसान होता है
क्योंकि एक स्वतंत्रता-सी रहती है
कथ्य बयानी में,
पता नहीं कवि को इसका कितना ध्यान था
पर कविता में नींद का सुंदर रुमान था.
बात सोये होने की थी
समय सुबह का था
अचरज नहीं कविता में एक स्वप्न का भान था.
मैं पढ़कर चकित होता था
पर यह तय नहीं था कि मैं जगा था.
सुबह-सवेरे देखे गए सपने की तरह
कविता का अहसास मेरे मन में है
पर सोचकर यह बार-बार बेचैन होता हूँ -
सोयी हुई स्त्री जब कविता में आती है
तो क्या उसकी नींद टूट जाती है?
सोयी हुई स्त्री, कविता में / राकेश रोहित |
बहुत अच्छी कविता। स्त्री विमर्श की सार्थकता इसी में है कि वह स्त्री की नींद तोड़े उसे जागृत करे । बधाई आपको रोहित जी
ReplyDeleteराकेश जी आपकी रचना बेहद प्यारी है , भावनाओं का ताना बाना सत्य एवं सौंदर्य के साम्य से लुभावना बन पड़ा है अनुराग चंदेरी
ReplyDelete"सोयी हुई स्त्री जब कविता में आती है
ReplyDeleteतो क्या उसकी नींद टूट जाती है?"
शब्द नहीं हैं मेरे पास!
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