कविता
छोड़िये, कुछ नयी बात कीजिए
आपके सिखाये थोड़े ही धड़कती है मेरी सांसें
हम तो जिद के मारे हैं
जो सहते हैं, वो कहते हैं!
सुबह होने से कुछ
क्षण पहले की कविता
- राकेश रोहित
उनका अपनी बातों पर
जोर है
इतना जोर दे कर कहते हैं
वे अपनी बातों की बात
कि एक दिन अपना ही दुख छोटा लगने लगता है
सस्ती लगने लगती है अपनी ही जान!
इतना जोर दे कर कहते हैं
वे अपनी बातों की बात
कि एक दिन अपना ही दुख छोटा लगने लगता है
सस्ती लगने लगती है अपनी ही जान!
अपने मन की ही आवाज को
छुपा लेने की इच्छा होने लगती है
अपना ही जिया हुआ जीवन का पाठ
झूठ लगने लगता है।
छुपा लेने की इच्छा होने लगती है
अपना ही जिया हुआ जीवन का पाठ
झूठ लगने लगता है।
...और यह जो बूँद- बूँद
बचाता आया हूँ मैं अपनी घृणा
यह जो समेट कर अपना लाचार दुख
मैं खड़ा हुआ हूँ बमुश्किल
आपके सम्मुख
इसका कोई मतलब नहीं है
क्योंकि आपकी बुद्धिमत्ता
तर्क से ऐसा ही मानती है!
बचाता आया हूँ मैं अपनी घृणा
यह जो समेट कर अपना लाचार दुख
मैं खड़ा हुआ हूँ बमुश्किल
आपके सम्मुख
इसका कोई मतलब नहीं है
क्योंकि आपकी बुद्धिमत्ता
तर्क से ऐसा ही मानती है!
आपके सिखाये थोड़े ही धड़कती है मेरी सांसें
हम तो जिद के मारे हैं
जो सहते हैं, वो कहते हैं!
चित्र / के. रवीन्द्र |
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