लघुकथा
मेरा नाम क्या है
- राकेश रोहित
यह एक आम बात थी, उसका एक नाम था. और अकसर वह खुद को अपने उसी नाम से पहचानता था. इसलिए जब मैंने उसे पुकारा वह रुकने से पहले ठिठका, चौंका और चिल्लाया, “अरे तुम!”
मैं ही था, उसने मेरी ओर देखा और और बात शुरू होने से पहले खत्म होने का सिरा ढूंढने लगी. उसकी अंगुलियां अखबार की तहों से खेलने लगी थीं जो कुछ देर पहले मेरे हाथों में लिपटा था.
“अच्छा है सस्ता है...” वह बोला, यद्यपि यह कोई विज्ञापक जिंगल्स नहीं था पर उसके चेहरे पर उपभोक्ता की-सी चमक महसूस की जा सकती थी, “...साथ-साथ भविष्यफल भी. देखूं मेरे बारे में क्या लिखा है?”
उसकी वैयक्तिकता ने मुझे क्षण- भर आहत किया था पर मैं उबर गया क्योंकि उसका मैं कहना कहीं-न-कहीं मेरे होने से जुड़ा था. “तुम्हारी राशि क्या है?” मैंने पूछा.
“राशि! यहीं कहीं …यानी नाम का पहला अक्षर लिखा होगा.” उसके कहने में एक कायम विश्वास था और फिसलन भरा सत्य.
वहां वैसा कुछ न था. केवल राशियां थीं और कुछ विचार. न कोई नाम, न कोई अक्षर जिनका नाम के साथ जुड़ाव हो. मुझे याद आया मैं उनके यदृच्छ चयन में अपना भविष्य पढ़ा करता था. मैंने उसकी ओर देखा, वह हतप्रभ था पर संभल गया, “बात दरअसल है कि लोग अपनी राशियां याद रखते हैं और आजकल तो अपना भविष्य भी, उन्हें कुछ ढूंढने की जरुरत नहीं पड़ती.”
“लेकिन तुम्हारी राशि क्या है?” मैंने उसे कुरेदना चाह और डर गया. पर उसके चेहरे पर मेरे विरुद्ध कुछ भी न था एक रहस्यमयता के सिवा. वह फुसफुसाया, “मैं अकसर भूल जाता हूँ, मेरी कोई राशि नहीं है. अजीब बात है न! अजीब.”
“लेकिन तुम्हारा नाम तो है?” मेरे स्वर अंधेरी कंदरा में गूंज रहे थे और भटक गये.
कौन जानता है? संभव है उसका कोई नाम ही न हो या फिर उसके नाम में हो बारह शब्द या उसका नाम हमारी वर्णमाला के किसी भी अक्षर से शुरू नहीं होता हो कि जिसको लिखना असंभव हो और बोलना कठिन. कौन जानता है? कुछ भी हो सकता है! दावे के साथ तो कुछ भी कहना मुश्किल है. संभव है वह उनमें से हो जिनका नाम तो होता है पर कोई भविष्य नहीं. यह एक आम बात है. ooo
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