लघुकथा
ईश्वर ने शोक मनाया
- राकेश रोहित
ईश्वर ने शोक मनाया. वह ईश्वर, ईश्वर नहीं है. हमारे मोहल्ले में रहता है और हरी सब्जियां बेचता है. हम सब उसे ईश्वर से ज्यादा हरी सब्जी से जानते हैं. मैं उसे ज्यादा नहीं जानता, पर इतना अवश्य कि ईश्वर है और हैं सब्जियां हरी-हरी. लेकिन एक शाम वह मेरे पास पहुंचा- "सब्जियां खरीद लीजिए भइया, हरी है."
मुझे अचरज हुआ. मेरे पास कभी नहीं आता था वह. मैंने कहा- "ईश्वर तुम मुझे नहीं जानते लेकिन मेरी मजबूरी समझ सकते हो. मुझे खाना बनाना आता नहीं. पका-पकाया लाता हूँ, वही खाता हूँ." पर वह बोले जा रहा था - "खरीद लीजिए हरी हैं. एक भी नहीं बिकीं. मोहल्ले में किसी ने नहीं खरीदा. आज मोहल्ले में शादी है. सभी दावत में शरीक होंगे. इधर मेरी माँ मर गई है. वही बोती, वही उगाती थी सब्जियां. मैंने सोचा आज भर बेच दूं कि फिर इतनी हरी न होगी सब्जियां."
मुझे दुःख हुआ कि उसने शोक नहीं मनाया और बेचने चला आया सब्जियां. मैंने देखा उसके चेहरे की रंगत उतर रही थी और खतरे में था सब्जियों का हरापन. उधर चुप थे पर्यावरण विशेषज्ञ और मंत्रीगण. मैं ना करता रहा पर ईश्वर छोड़ गया मेरे घर हरी सब्जियां, फिर वह कभी पैसे लेने नहीं आया. अब भी रखी हैं वे हरी सब्जियां कि जब न होंगी सब्जियां और न होगा ईश्वर, मैं दराज से निकालूँगा सूखी भिन्डी कि कहूँगा था इसमें हरापन, कि था कभी ईश्वर! जिसने शोक मनाया. ईश्वर ने शोक मनाया. ooo
kahani se jyada ek gadya-geet laga. bhavnaon ka smayajan pathniy hai. likhte rahe .
ReplyDeleteThe title of the story itself invites attention and when I started to read I was mesmerized. You are rightly keeping focus on such persons/incidents which generally remain unnoticed. Probably this is the sole purpose of any creative writing. Congratulations again! -Shekhar Vashishth.
ReplyDeleteYes, I like it very much. I am with Eeshwar.-Deepak.
ReplyDeleteइसे ही कहते हैं दूसरों के लिए जीना
ReplyDeletemarmik abhivaykti,aisa samay ishwar kisi ke jeevan mai na laye, jab majbooriya samvadnao ka dam ghotne lage.
ReplyDeletebahot khub dil chu liya ishwar ne
ReplyDeleteNa jane kitne aise ishvar hai jo sabjjiyo ke harepan ki shunyata ko jeete hue ya to shok mana rahe hai ya phir us hariyalipan ki lalak me bhuaraya rakh banane par vivas hote ja rahe hai! kahani bahut marmspashi hai nahi kahungi balki mai to yah kahna chahungi ki aas-paas ke harepan me n jane kitne surkh rang doob gaye hai jaha dekhne par pata chalta hai ki ek hari-bhari shunyata hai hamare jivan me charo or!
ReplyDelete