Tuesday 5 October 2010

लांग शॉट - राकेश रोहित

लघुकथा
                               लांग शॉट
                                       -राकेश रोहित

      वह हँसा जबकि इसमें हँसने जैसा कुछ न था. मैंने केवल इतना कहा था, अजीब मुश्किल है टिकट ही नहीं मिल रहा और उसने मुझे भरपूर देखा, मुस्कराया, फिर बोला, फिल्म चल निकली है! इस सूचना में जिज्ञासा जैसा कुछ था यह उसके हाव-भाव से समझना कठिन था पर शब्द घंटियों की तरह बज रहे थे. वह अपनी रौ में बोलता रहा. 
      मेरा क्या जाता था! मुफ्त की फिल्म और सीट की सुविधाजनक स्थिति. पास कुछ शब्द अवश्य बिखर रहे थे आपको यकीन न हो एसिस्टेंट डायरेक्टर मुझसे कह रहा था, ऐसा स्टंट-दृश्य पहली बार किसी फिल्म में आया है. सच कहिये तो मुझको काफी डर लग रहा था- कर पाऊंगा या नहीं. आप जानते हैं यह कितना खतरनाक होता है. कभी-कभी. लेकिन सब कुछ इतनी तेजी में हुआ कि मैं खुद महसूस नहीं सका यानी रोमांच जैसा कुछ. आप समझ रहे हैं! शॉट ओ.के. हुआ तो हीरो ने मेरी पीठ ठोंकी. आप अंदाज नहीं लगा सकते मुझे कितनी खुशी हुई तब. आप अभी देखेंगे कपड़े से लेकर हेयर स्टाइल तक सब हीरो के जैसा है. आप मुझे शायद पहचान नहीं पायें. कैमरा लांग शॉट में हैं न, पर.... और उसके शब्द फुसफुसाकर रह गये. तालियों का एक रेला बह निकला था.

      अँधेरे में उसके हाव-भाव महसूसना काफी कठिन था पर वह जिस तरह चुप पड़ गया था उससे मुझे भय था कि कहीं उसकी भूमिका गुजर न गयी हो. अब एक फिल्म में तो इतने सारे लांग शॉट होते हैं. मुझे क्या मालूम था यह सब एक झटके में होगा. मेरा अभीष्ट उस स्टंटमैन को ठेस पहुंचाने का तो कभी न था पर सामने गीतों के बोल तैरने लगे. मैं नायिका के चेहरे के क्लोजअप बटोरने लगा. ooo

2 comments:

  1. Very good. At last a story on stuntman. Nice to read, sensitive in approach. - deepak.

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  2. this is very good indeed.it is revealing the pain of a stuntman.

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